उन्नत कृषि तकनीकों के उपयोग से बाजरे का शुष्क क्षेत्र (राजस्थान) में उत्पादन

इस लेख में बाजरे की खेती की सम्पूर्ण जानकारी दी गई है जो बीकानेर के स्वामी केशवानन्द राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के कोमल शेखावत, डॉ. पी. सी. गुप्ता एवं नेमीचंद शर्मा द्वारा प्राप्त हुआ है-

सर्दी के मौसम में बहुत ही स्वास्थ्यवर्धक होता है बाजरे का सेवन

बाजरा की फसल

बाजरा सम्पूर्ण राजस्थान के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण फसल है। यह राजस्थान में 50 % क्षेत्रफल  से भी ज्यादा में लगाई जाती है। राजस्थान की विषम परिस्थितियों में भी यह अत्यधिक उत्पादन देने वाली फसल है। यह अच्छी उपज देने के साथ ही पशुधन के लिए चारे का भी अतिउतम स्त्रोत है। इससे अनेकों सह-उत्पाद भी बनाए जाते है जैसे – खिचड़ा, बिस्किट, लड्डू, पापड़, चकली, केक, खाखरा, राबड़ी, नमकपारा आदि। बाजरा ग्रामीण क्षेत्र में तो बहुत ही लोकप्रिय था ही किन्तु पोषक तत्वों की भरपूरता के कारण शहरी लोग भी आज कल इस का बहुत उपयोग कर रहे है । बाजरे में 75-76 % कार्बोहाइड्रेट, 13-14 % प्रोटीन, 5-6 % वसा, 1-2 % मिनरल उपस्थित होते है । जिन महिलाओं, पुरुषो या बच्चो में आइरन की कमी पायी जाती है, उनके लिए बाजरा बहुत ही लाभकारी है इस के सेवन से आयरन की कमी को दूर किया जा सकता है। कुपोषण दूर करने के लिए बाजरा अत्यधिक सस्ता, सुलभ और उपयोगी स्त्रोत है।

खेत की तैयारी

            जल निकास की उत्तम व्यवस्था वाली बलुई दोमट मिट्टी वाला खेत बाजरे की खेती के लिए उपयुक्त है। बाजरे की खेती के लिए मिट्टी का भुरभुरा होना बहुत ही लाभकारी होता है। खेत की मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए देशी हल से एक बार जुताई कर देनी चाहिए तथा एक या दो बार जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या हेरो से कर देनी चाहिए। बीजाई से करीब 30 दिन पूर्व 5-6 टन प्रति हैक्टेयर गोबर की सड़ी खाद खेत में डाल देनी चाहिए, उसके बाद खेत में पाटा अवश्य लगाना चाहिए ताकि मिट्टी की नमी बनी रहे। सफेद लट के नियंत्रण हेतु प्रति हैक्टेयर भूमि में 8 किग्रा क्यानालफास 5 % कण मिलाकर अंतिम जुताई करनी चाहिए।

खेत की बिजाई

            बाजरे की बुवाई या बिजाई मानसून की पहली वर्षा के तुरंत बाद जून-जुलाई के महीने में कर देनी चाहिए। बीज की गहराई 3-5 सेमी॰ तक होनी चाहिए जिससे अंकुरण भली प्रकार से हो जाए। 4 किग्रा॰ बाजरे का बीज प्रति हेक्टेयर की दर से काम लेना चाहिए किन्तु ध्यान रहे प्रमाणित बीज का ही उपयोग करना चाहिए। बाजरे में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सेमी॰ तथा पौधे से पौधे की दूरी 15 सेमी॰ होनी चाहिए जिस से अन्य क्रियाए भी आसानी से हो जाती है एवं पौधे को उचित स्थान मिल जाता है।

फसल चक्र

            बाजरा – ग्वार, बाजरा – मोठ, बाजरा – मूंग ।

बाजरे की संकर किस्मे

            आर॰ एच॰ बी॰ -121, आर॰ एच॰ बी॰-177, आर॰ एच॰ बी॰- 538, आइ॰ सी॰ एम॰ एच॰ -17, आइ॰ सी॰ एम॰ एच॰ -356,  इत्यादि ।

बीज का उपचार

            रुखंडी व चैपा रोग से बाजरे को बचाने हेतु बीज को 20 % नमक के घोल में 4-5 मिनट तक डुबोकर हिलाना चाहिए तथा तैरते हुये हल्के बीज व कचरे को निकाल देना चाहिए। बाकी बचे हुये बीजो को साफ पानी से अच्छी तरह धो कर सूखा लेना चाहिए। बीज जनित व कवक जनित बीमारियो से फसल को बचाने के लिए 2 ग्राम प्रति किग्रा की दर से थाइरम या कार्बेण्डाजिम का उपयोग बीज उपचार के लिए लेना चाहिए ।

  1. दीमक से बचाव के लिए बीज को 4 मिली ग्राम क्लोरोपायरिफॉस 20 ई॰ सी॰ प्रति किग्रा॰ का उपयोग करना चाहिए।
  2. क्षारीय व लवणीय मिट्टी में बीजो को बोने से पहले 1 % सोडियम सल्फेट में 12 घंटे तक भिगोना चाहिए तथा साफ पानी से धो लेना चाहिए। इसके बाद बीजो को छाव में सुखाने के बाद शीघ्र ही बुवाई करनी चाहिए।

फसल की निराई-गुड़ाई

            खेत की निराई – गुड़ाई समय समय पर करते रहना चाहिए। निराई – गुड़ाई के समय खेत में नमी होनी चाहिए। बाजरा की फसल जब 15 -20 सेमी की हो जाये तब निराई – गुड़ाई का उचित समय होता है। निराई – गुड़ाई करते समय जड़ो को कोई नुकसान नही होना चाहिए। बुवाई के 3-4 सप्ताह तक खेत से सम्पूर्ण खरपतवार निकाल देनी चाहिए।

फसल का विरलीकरण

            विरलीकरण करने से पौधे की बढवार अधिक होती है तथा अधिक व अच्छे कल्ले फूटते है, ऐसा करने से पैदावार अधिक होने की संभावना बढ़ जाती है। विरलीकरण के समय पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी रखते है। विरलीकरण की प्रक्रिया 15 से 20 दिन के अंदर करनी चाहिए । अधिक सूखे की समस्या होने पर पौधे की नीचे की पत्तीयो को हटाकर भी पौधे को सूखे से बचाया जा सकता है। अधिक सूखा पड़ने की अवस्था में पौधो का एवं कतारो का विरलीकरण करके फसल को सूखे से बचाया जा सकता है।

खेत में पौधा प्रत्यारोपण

            वर्षा के दिनो में बीजाई के 2 से 3 सप्ताह के दौरान पौधा प्रत्यारोपण किया जाता है। पौधा प्रत्यारोपण कर के विरल जगह की भराई की जा सकती है।

खेत में पलवार का प्रयोग करना

            खेत में फसल की दो पंक्तियो के बीच में फसल अवशेष या खरपतवार बिछा देनी चाहिए जिस से खेत में नमी भी कम नही होती है तथा खरपतवार भी नही होती है।

पोषक तत्वो का प्रबंधन

            40 किग्रा नाइट्रोजन व 32 किग्रा फास्फोरस की मात्रा असिंचित क्षेत्र में अच्छी पैदावार लेने के लिए बहुत उपयोगी है। आधी मात्रा नाइट्रोजन की व पूरी मात्रा फास्फोरस की बुवाई के समय डाल देना चाहिए। जब फसल 15 से 20 दिन हो जाए तथा वर्षा हो रही हो तो बची हुयी नाइट्रोजन की मात्रा छिड़क देनी चाहिए। वर्षा होने के 10-12 घण्टे बाद भी नाइट्रोजन का छिड़काव किया जा सकता है। नाइट्रोजन का छिड़काव सांयकाल के समय करना चाहिए ताकि वाष्पीकरण के समय कम से कम हानि हो तथा नाइट्रोजन को पौधे अधिक से अधिक उपयोग में ले सके।

फसल संरक्षण

1.पत्ती खाने वाले कीटो का नाश करने के लिए 1.5 % क्यूनलफॉस चूर्ण 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डाल देना चाहिए।

2. कातरे की लट से फसल के बचाव के लिए फोसोलोन 4 % या 1.5 % क्यूनलफॉस चूर्ण 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डाल देना चाहिए।

3. कातरे के पतंगो के नियंत्रण के लिए प्रकाशपाश का उपयोग करना चाहिए । खेत की मेंडो व खेत के आस पास लालटेन , बिजली के बल्ब जला कर इन के नीचे मिट्टी के तेल मिले पानी की परात रख देनी चाहिए ताकि कातरा रोशनी से आकर्षित हो जाए एवं जलकर नष्ट हो जाये।

हरित बाली या जोगिया ( ग्रीन ईयर ) रोग

  1. मेंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करना चाहिए, फसल में जहा जोगिया रोग दिखाई दे तो।
  2. रोग प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग सब से अच्छा तरीका है, फसल को बचाने का जसै – राज॰ 171, एच॰ एच॰ बी॰ 67 आदि।

अरगट या गुंदया

  1. रोगग्रस्त पौधो को उखाड कर फेक कर देना चाहिए ।
  2. खेत और खेत के आस पास से अंजन घास को निकाल कर फेक देना या जला देना चाहिए क्योकि ये रोग ईसी घास से फैलता है ।
  3. यह रोग ब्लिस्टर बीटल से भी होता है अत: सिट्टे आने से पहले कार्बोरिल ( 5 % चूर्ण ) 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर दर से भुरकाव करना चाहिए ।

मिश्रित खेती

            बाजरे की दो जुड़वा कतारो के बीच 30 सेमी. की दूरी पर ग्वार की एक कतार बोयी जा सकती है। बाजरे के खेत में मोठ भी लगाई जा सकती है। ऐसा करने पर सूखा पडने की अवस्था में किसान को एक फसल के असफल होने पर दूसरी फसल से पैदावार एवं चारा प्राप्त होने की संभावना अधिक रहती है ।