फसल उत्पादन में अंधाधुन रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के भारी मात्रा में प्रयोग होने के कारण आज हमारी भूमि की उर्वरता दिनोंदिन कम होती जा रही है फलस्वरूप उत्पादन लेने के लिए और अधिक मात्रा में रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग करना पड़ता है जिस कारण से खेती की लागत तो बढ़ती ही है साथ ही साथ भूमि की उर्वरता कम होती है तथा प्राकृतिक संतुलन भी बिगड़ता है जिससे हमारा पर्यावरण दिनोंदिन प्रदूषित होता जा रहा है जिसका सीधा प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है।
अत: पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए एवं आने वाली पीढ़ी के लिए प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित रखने के लिए आज जैविक खेती को अपनाना बहुत ही आवश्यक हो गया है, भूमि की उर्वरता को बढ़ाने के लिए कुछ जैविक विधियाँ जैसे कि जीवामृत, बीजामृत, पंचगव्य, दशगव्य आदि का प्रयोग बहुत ही लाभदायक माना गया है, जिनमे से एक “जीवामृत” बनाने एवं प्रयोग करने कि विधि के बारे मे इस लेख मे बताया जा रहा है ।
जीवामृत क्या है?
जीवमृत दो शब्दों “जीवन + अमृत” से मिलकर बना है अर्थात जीवन के लिए अमृत। जीवामृतसूक्ष्म जीवों का घोल होता हैं, जो की मृदा मे लाभदायक जीवाणुओ की संख्या बढ़ाता हैं एवं पोधों को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराता हैं ।
जीवामृत के लाभ
जीवामृत में मौजूद सूक्ष्मजीव मिट्टी में उपस्थित अनुपलब्ध पोषक तत्वों को उपलब्ध अवस्था में बदलते हैं जिससे फसल इन पोषक तत्वों को आसानी से ग्रहण कर पाते हैं । जीवामृत के प्रयोग से पौधों को सभी पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं साथ ही साथ मिट्टी के संरचना में भी सुधार होता है तथा इसमें सूक्ष्मजीवों की संख्या के साथ-साथ केंचुओ की संख्या में भी वृद्धि होती है जिससे मिट्टी में जल और वायु का संचार अच्छा होता है, फसलों एवं फलदार पौधो की जड़ों का विकास अच्छा होता है जिससे पौधे की वृद्धि एवं उत्पादन दोनों में सुधार होता है ।
जीवामृत बनाने के लिए आवश्यक सामग्री:
- देसी गाय का गोबर 10 किलो
- गोमूत्र 10 लीटर
- पीपल या बरगद के जड़ के पास की मिट्टी 1 किलो
- किसी भी दाल का आटा 2 किलो
- गुड 2 किलो
- पानी 200 लीटर
बनाने की विधि
जीवामृत बनाने के लिए किसी बर्तन में 10 लीटर तक पानी लेकर उसमें ऊपर बताई गई सभी सामग्रियों को अच्छे से घोलते हैं उसके बाद 200 लीटर बर्तन में इस सामग्री को डालकर उसमे 190 लीटर पानी और मिला देते हैं , उसके पश्चात किसी जालीदार कपड़े से इस मिश्रण को ढककर किसी छायादार स्थान पर रख देते हैं , प्रतिदिन सुबह-शाम मिश्रण को किसी लकड़ी के डंडे की मदद से उसको अच्छी प्रकार से घड़ी की सुई अनुसार उसको पाँच से दस मिनट तक घुमाते हैं, लगभग एक सप्ताह बाद जीवामृत बनकर तैयार हो जाता हैं ।
सावधानियां
- जीवामृत बनाने के लिए किसी धातु के बर्तन का प्रयोग नहीं करना चाहिए, इसके लिए प्लास्टिक के पात्र का उपयोग करें ।
- जीवामृत बनाने की जगह छायादार होनी चाहिए वहां सीधी धूप नहीं पड़नी चाहिए ।
- जीवामृत बनाने के लिए देसी गाय के गोबर और गोमूत्र का ही प्रयोग करना चाहिए ।
- जीवामृत में प्रयोग होने वाली मिट्टी पीपल या बरगद के पास की अथवा जंगल की होनी चाहिए इनमें जीवों की संख्या अधिक मात्रा में होती है ।
प्रयोग करने की विधि एवं समय
- जीवामृत को सभी प्रकार की फसलों (अनाज, दलहनी, तिलहनी), फलदार वृक्षो, सब्जियों, बागानों इत्यादि में प्रयोग किया जा सकता हैं ।
- जीवामृत को खेत की तैयारी के समय सिंचाई के समय अथवा खड़ी फसल में भी इसका प्रयोग कर सकते हैं।
- 200 लीटर जीवामृत 1 एकड़ के लिए पर्याप्त होगा ।
- जीवामृत एक फसल के जीवन काल में तीन से पांच बार प्रयोग करने से फसलों में रासायनिक खाद डालने की आवश्यकता नहीं होगी ।
लेखक विवरण
(*धर्मेंद्र कुमार1, डॉ. हेमराज मीना2 एवं हीरा लाल शर्मा1)
1शोधार्थी एवं 2सहायक प्राध्यापक, संगम विश्वविध्यालय, भीलवाड़ा (राजस्थान)
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