जैविक खेती के विभिन्न स्रोतों में से एक स्रोत है हरी खाद। हरी खाद एक ऐसी खाद है जिसे किसान स्वयं अपने खेत पर उगाकर उसी स्थान पर खाद बना सकता है इसीलिए हरी खाद को एक महत्वपूर्ण विकल्प माना गया है। बिना सड़े-गले हरे पौधे (दलहनी अथवा अदलहनी अथवा उनके भाग को जब मृदा की नत्रजन या जीवांश की मात्रा बढ़ाने के लिए खेत में दबाया जाता है तो इस क्रिया को हरी खाद देना कहते हैं।
दलहनी एवं गैर दलहनी फसलों को उनके वानस्पतिक बृद्धिकाल में बहुत समय पर मृदा उवर्रकता एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए जुताई करके मिट्टी में अपघटन के लिए दवाना ही हरी खाद देना है। ये फसलें अपने जड़ ग्रन्थियों में उपस्थित सहजीवी जीवाणु द्वारा वातावरण में नाइट्रोजन का दोहन कर मिट्टी में स्थिर करती है।
सघन कृषि पद्धति के विकास तथा नगदी फसलों के अंतर्गत क्षेत्रफल बढ़ने के कारण हरी खाद के प्रयोग में निश्चित ही कमी आई लेकिन बढ़ते ऊर्जा संकट, उर्वरकों के मूल्यों में वृद्धि तथा गोबर की खाद एवं अन्य कम्पोस्ट जैसे- कार्बिनक स्रोतों की सीमित आपूर्ति से आज हरी खाद का महत्व और बढ़ गया है
हरी खाद के लिए आवश्यक गुण
- फसल कम समय में अधिक बृद्धि करती हो।
- फसल की जडें अधिक गहराई तक पहुचती हो।
- फसल की वानस्पतिक बृद्धि, शाखायें व पत्तियाँ हो।
- फसल के वानस्पतिक भाग मुलायम हो।
- फसल की जल मॉग कम हो
- पोषक तत्वों संबंधी मॉग कम हो।
- फसल जलवायु की विभिन्न परिस्थितियों जैसे अधिक ताप, कम ताप, कम या अधिक वर्षा सहन करने वाली हो।
- कीट पतंगों के आक्रमण को सहन करने वाली हो।
- फसल विभिन्न प्रकार की मृदाओं में पैदा होने में समर्थ हो।
- मृदा पर प्रभाव अच्छा छोड़ती हो।
- फसल की बीज सस्ती दरों पर उपलब्ध हो। फसल कटाई के बाद षीघ्र बृद्धि करती हो।
- फसल कई उद्देश्यों की पूर्ति करती हो जैसे- चारा, रेषा, हरी खाद, फसल की बीज उत्पादन क्षमता अधिक हो।
हरी खाद के उपयोग
- मृदा में जीवांश एवं नत्रजन का योगः- विभिन्न जलवायु परिस्थितियों 100 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हे मृदा में बढाई जा सकती है। दलहनी फसलें मृदा में नत्रजन की जो मात्रा बढाते है उसका 2 हिस्सा वह अपनी बढ़वार के लिए भी उपयोग कर लेते है।
- मृदा सतह में पोषक तत्वों का संरक्षण।
- मृदा सतह में पोषक तत्वों का एकत्रीकरण।
- पोषक तत्वों की उपलब्धता में बृद्धि।
- अधोसतह में सुधार।
- मृदा सतह का संरक्षण।
- जैविक प्रभावः- नत्रजन का स्थरीकरण।
- खरपतवार नियंत्रणl
- मृदा संरक्षण में सुधार।
- क्षारीय एवं लवणीय भूमियां का सुधार।
- फसलों के उत्पादन में बृद्धि।
हरी खाद की सम्भावनायें
- मृदायें जीवांश पदार्थ के स्तर को बनायें रखने के लिए हरी खाद उगाना आवश्यक है।
- लबणीय भूमि के सुधार के लिए।
- वर्षात में भूमि को पत्ते एवं तने ढॅक लेते हैं। जिससे मृदा-क्षरण कम होती है।
हरी खाद के लिए उपयुक्त फसलें – हरी खाद के लिए प्रयोग में लायी जाने वाली फसलो को दो श्रेणियों में विभाजित कर सकते है – दलहनी एवम अदलहनी फसले
1. दलहनी फसले :- दलहनी या फलीदार फसले हरी खाद के लिए उपयुक्त रहती है, क्योंकि इन फसलों की जड़ो की ग्रंथियों में उपस्थित राइजोबियम जीवाणु वायुमंडल में नाइट्रोजन ग्रहण करते है । साथ ही इन फसलों की वानस्पतिक बढवार भी अच्छी होती है तथा फसल अवधि भी कम होती है। इनमे प्रमुख फसलें सनई, ढैंचा, ग्वार एवम् लोबिया है ।
2. अदलहनी फसले :- ये फसलें मिट्टी में नाइट्रोजन स्थरीकरण तो नहीं करती है, किन्तु विलय नाइट्रोजन का सरंक्षण अवश्य करती है तथा मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि करती है, जिनसे मृदा में सुधार होता है । हरी खाद के लिए अदलहनी फसलों में मक्का, जौ, ज्वार आदि का प्रयोग किया जाता है ।
हरी खाद की बुवाई का समय
हमारे देश में विभिन्न प्रकार की जलवायु पाई जाती है अतः सभी क्षेत्रों के लिए हरी खाद की फसलों की बुवाई का एक समय निर्धारत नहीं किया जा सकता है परन्तु फिर भी अपने क्षेत्र के लिए अनुकूल फसल का चयन करके बुबाई वर्षा प्रारंभ होने के तुरन्त बाद कर देनी चाहिए तथा यदि सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो तो हरी खाद की बुवाई वर्षा शुरू होने के पूर्व कर देनी चाहिए हरी खाद के लिए फसल की बुबाई करते समय खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है ।
बीज दर :- हरी खाद वाली फसलों की बुवाई हेतु बीज की मात्रा बीज के आकार पर निर्भर करती है । हरी खाद के लिए बोई जाने वाली मुख्य फसलों की बीज दर इस प्रकार है –
फसल | बीज दर (किग्रा / है.) |
सनई | 50-60 |
ढैंचा | 60-80 |
ग्वार | 20-25 |
मूंग, उड़द | 15-20 |
लोबिया | 45-50 |
हरी खाद देने की विधियाँ
- हरी खाद की स्थानिक विधि– इस विधि में हरी खाद की फसल को उसी खेत में उगाया जाता है। जिसमें हरी खाद का उपयोग करना होता है। यह विधि समुचित वर्षा अथवा सुनिश्चित सिंचाई वाले क्षेत्रों में अपनाई जाती है। इस विधि में फूल आने से पूर्व वानस्पतिक बृद्धिकाल (45-60 दिन) में मिट्टी में पलट दिया जाता है। मिश्रित रूप से बोई गई हरी खाद की फसल को उपयुक्त समय पर जुताई द्वारा खेत में दवा दिया जाता है। इसके प्रमुख उदाहरण ढैंचा, सनई एवम् लोबिया है।
- हरी पत्तियों की हरी खादः– इस विधि में हरी खाद की फसलों की पत्तियों एवं कोमल शाखाओं को तोडकर खेत में फैलाकर जुताई द्वारा मृदा में दवाया जाता है। व मिट्टी में थोडी नमी होने पर भी सड़ जाती है। यह विधि कम वर्षा वाले क्षेत्रों में उपयोगी होती है। इसके प्रमुख उदाहरण करंज, सुबबूल, अमलताश, सफ़ेद आक, सदाबहार आदि है।
हरी खाद की गुणवत्ता बढ़ाने के उपाय
- उपयुक्त फसल का चुनावः- जलवायु एवं मृदा दशाओं के आधार पर उपयुक्त फसल का चुनाव करना आवश्यक होता है। जलमग्न तथा क्षारीय एवं लवणीय मृदा में ढैंचा तथा सामान्य मृदाओं में सनई एवं ढैंचा दोनों फसलों से अच्छी गुणवत्ता वाली हरी खाद प्राप्त होती है।
- हरी खाद की खेत में पलटाई का समयः- अधिकतम हरा पदार्थ प्राप्त करने के लिए फसलों की पलटाई या जुताई, बुवाई के 6-8 सप्ताह बाद प्राप्त हांेती है। आयु बढ़ने से पौधों की शाखाओं में रेषें की मात्रा बढ़ जाती है। जिससे जैव पदार्थ के अपघटन में अधिक समय लगता है।
- हरी खाद के प्रयोग के बाद अगली फसल की बुवाई या रोपाई का समयः- जिन क्षेत्रों में धान की खेती होती है। वहाँ जलवायु नम तथा तापमान अधिक होने से अपघटन क्रिया तेज होंती है। अतः खेत में हरी खाद की फसल की आयु 40-45 दिन से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- समुचित उर्वरक प्रबन्धः- कम उर्वरकता वाली मदाओं में नाइट्रोजनधारी उर्वरकों का 15-20 किग्रा / है. का प्रयोग उपयोगी होती है राइजोवियम कल्चर का प्रयोग करने से नाइट्रोजन स्थिरीकरण सहजीवी जीवाणुओं की क्रियाशीलता बढ़ जाती है।
लेखक विवरण
(*भरत लाल मीणा1 रामलखन मीणा2 एवं भवानी सिंह मीणा1)
1शोधार्थी, राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान, दुर्गापुरा, जयपुर, राजस्थान
2शोधार्थी, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं तकनीकी विश्वविद्यालय, उदयपुर
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